Monday 14 August 2017

अनीता नेगी की चार कविताएं


          अनीता नेगी की चार कविताएं

   




( १)

मौत
रोज़ रोज़ आए
तो
रोज़ मरने
काशी कौन जाएगा,
यह स्वर्ग के रास्ते भी कम खर्चीले नहीं ।

प्रतिक्रिया देना
दावेदारी है ज़िंदा होने की,
अब घड़ी घड़ी
कौन इंकलाब टेरता रहे,
यह जिंदा रहने की तिड़कमें भी
कम बनावटी नहीं।

रोज़ निकलो घर से
मगर पहुंचो कहीं नहीं ,
यह जीने की शर्त भी
कम घिसावट नहीं ।

(२)

कभी
छोटे, बहुत छोटे अदने
आदमी से बात करना और
उसकी सुनते चले जाना
पाओगे जमाने की
लतकार फटकार के बीच
उसके पास है हजारों किस्से ।

किस्सों की अपनी दुनिया का वह एक अकेला नायक है, उसके पास जीत की
बहुत छोटी छोटी सी लघु कथाएं हैं,
मगर वह अपनी हर कथा में जीतना नहीं चाहता
बस बेज्जती से बचे रहना चाहता है ।

उसके भीतर चाय जैसा खोलता रहता है
हरदम कुछ ना कुछ ।

(३)

अपने ही देश के परदेसी मजदूर
रहते हैं शहरों में गुमनाम पतों पर
भेड़ों के झुँड की तरह
सबसे सस्ते और उदासीन कमरों में

मन को हरा करने के लिए सुनते हैं
अपने भोजपुरी नेपाली गाने

शाम को इन सब मजदूरों में
फर्क करना मुश्किल होता है
हर थके मांदे चेहरों का एक जैसा भूगोल
और भाग्य का एक जैसा इतिहास होता है

वह तसलो के साथ उठाते हैं
अपना इकराह शरीर
और पसीने के गीलेपन के साथ
तसले के ऊपर जिम्मेदारी के भारीपन को भी

मैंने देखा नहीं कभी
किसी मजदूर को कविता लिखते
देर रात करवटें बदलते हैं

उसे किस्सों का किरदार बनते देखा है हर बार
यह कच्चे इंसान है जो सिर्फ पक्के मकान चिनते हैं
भूखे पेट सोते हैं
गूंगी ज़बान में रोते हैं।

(४)

कूड़ा बीनने वाले बच्चे
 आज भी नहीं नहाए
जैसे सोए थे वह
वैसे ही उठ खड़े हुऐ
अपना बौरा उठाए चल पड़े हैं

" आज देर हो जाएगी "
कहकर काम वाली बाई
निकली सुबह सात बजे से
शाम के सात बजे तक
 पृथ्वी के सापेक्ष पांच घरों का फेरा लगा देगी।

सच बतलाओ
तुम लोगों के कैलेंडर में
कितने इतवार आते हैं ?


3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 11 नवम्बर 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
    "एकलव्य"

    ReplyDelete

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